झूठा विकास: आजाद मंदिर में आज भी नहीं जलाता है कोई दीपक, स्मारक पर ‘झूठे पत्थर’,आखिर कब बहुरेंगे दिन
उन्नाव।
शहीद शिरोमणि चंद्रशेखर आजाद की जन्मस्थली बदरका (उन्नाव) में उनके स्मारक के नाम पर सिर्फ उनकी प्रतिमा ही स्थापित की गई है। गांव को पर्यटन स्थल घोषित कर विकास की न जाने कितनी ही योजनाओं की घोषणा हुई पर सब झूठ। सवाल है कि स्वतंत्रता के अमृत उत्सव में बदरका के दिन बहुरेंगे क्या?
कानपुर से कोई 40 किलोमीटर दूर बदरका गांव दुनिया में चंद्रशेखर आजाद के नाम से पहचाना गया। 1973 में एक पार्क में उनकी प्रतिमा स्थापित कर उसे देश का पहला शहीद स्मारक बताया गया। 1985 को उनकी जन्मस्थली (पुश्तैनी घर) को पक्का कर वहां आजाद की मां जगरानी देवी की प्रतिमा स्थापित की गई। स्मारक स्थल (पार्क) में उनकी कोई निशानी नहीं है। चौतरफा गंदगी, काई और कोने में खस्ताहाल दो कमरे। स्मारक स्थल पर पांच साल पहले तब के केंद्रीय पर्यटन मंत्री महेश शर्मा ने विकास कार्यों की आधारशिला रखी थी पर काम कुछ नहीं हुआ।
पूर्व मंत्री शिवपाल सिंह का भी एक पत्थर प्रतिमा के बगल में जड़ा है पर काम धेला नहीं हुआ। परिसर में ही पुलिसचौकी खोल दी गई, जहां एक कोने में कबाड़ पड़ा है। मूर्ति की नियमित सफाई भी नहीं। स्मारक स्थल तक रास्ते भी ऐसे नहीं कि बिना हिचकोले खाए निकल सकें। आजाद का घर (आजाद मंदिर) देखकर कोई भी देशभक्त रो पड़ेगा। वहां कबूतरों का डेरा, चौतरफा गंदगी, चटकी फर्श, छत और प्रतिमा पर जमी धूल। जन्मदिन पर ही फूलमालाएं चढ़ती हैं। वहां तक पहुंचने के लिए तंग संकरी गंदगी से पटी गलियां दिखेंगी।
हरबंश राय के जिस महल के नीचे आजाद और उनकी क्रांतिकारी टीम गुप्त बैठकें करती थी, वह भी खंडहरनुमा वीरान है। पुरातत्व महत्व के इस महल को संरक्षित करने के कोई इंतजाम नहीं। देश के महान बलिदानी के गांव का विकास तक नहीं हुआ। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में इलाज के पुख्ता इंतजाम नहीं। कोई सरकारी इंटर कालेज नहीं। अभी भी कई कच्चे घर। आजाद की निशानियां सुरक्षित रखने की योजनाएं कागजों पर हैं।
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कुछ भी नहीं हुआ
पूर्व मुख्यमंत्री संपूर्णानंद और नारायणदत्त तिवारी ने स्मारक और आजाद मंदिर निर्माण में मदद की थी। ज्यादातर काम चंदे से हुआ। इंदिरा गांधी सहित कई प्रधानमंत्री, मंत्री, राज्यपाल, नेता और अधिकारी बदरका आए, वादा कर गए पर किया कुछ नहीं। मेरे बाबा ने कई लोगों के सहयोग से ट्रस्ट बनाया और एक-एक पाई चंदा जुटाकर कुछ न कुछ आयोजन करते रहे। चंद्र शेखर आजाद की माता जी मेरे परिवार की बेहद निकट थीं। जन्मस्थली की उपेक्षा पर दुख है।
राजन शुक्ला, बदरका
कोई देखने वाला नहीं
देश का हर नेता भाषण में चंद्रशेखर आजाद का नाम लेता है पर हकीकत में उनकी यादें सहेज कर रखने कोई आगे नहीं आता। आजाद की मृत्यु के बाद उनकी मां जगरानी ने भी बहुत कष्ट झेला, दर-दर भटकीं और अभाव में जीवन कटा।
मनीष वाजपेयी, बदरका
लोक कथाओं में चंद्रशेखर आजाद
बदरका में 7 जनवरी 1906 को आजाद का जन्म हुआ। कुछ लोग जन्म की जगह भाबरा (मध्यप्रदेश) में 23 जुलाई 1906 बताते हैं। आजाद पढ़ाई के लिए बनारस गए पर 15 साल की उम्र ही स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए और 15 कोड़ों की सजा मिली। इसके बाद वह कभी पुलिस के हाथ नहीं आए। 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अलफ्रैड पार्क में पुलिस से चौतरफा घिरने पर खुद को गोली मार ली और शहीद हो गए। जीवन का एक बड़ा हिस्सा कानपुर में भी बीता। भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त, राजगुरु सहित सैकड़ों क्रांतिकारियों को एकजुट कर अंग्रेजी हुकूमत की नींद उड़ा दी। काकोरीकांड सहित कई क्रांतिकारी घटनाओं को अंजाम दिया।
