भाजपा की सूची हुई जारी, हरदोई से नितिन होंगे प्रत्याशी
हरदोई।
विधानसभा चुनाव के लिए आठों सीटों पर भाजपा ने प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं। केवल संडीला से भाजपा के विधायक रहे राजकुमार अग्रवाल का टिकट काटा है। उनके स्थान पर अलका अर्कवंशी चुनाव लड़ेंगी। वहीं सदर सीट पर पूर्व में ही तय हो चुके नितिन अग्रवाल के नाम पर भी भाजपा ने मुहर लगा दी है। अन्य छह सीटों पर पुराने चेहरों पर ही दांव लगाया है।
सवायजपुर विधानसभा सीट से इस बार भी माधवेंद्र प्रताप सिंह रानू ही भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे। शाहाबाद से रजनी तिवारी, गोपामऊ से श्याम प्रकाश, सांडी से प्रभाष वर्मा, बिलग्राम-मल्लावां सीट से आशीष सिंह आशू और बालामऊ विधानसभा सीट से रामपाल वर्मा ही भाजपा का चेहरा होंगे। भाजपा ने सूची से यह स्पष्ट कर दिया है कि पिछले पांच वर्षों के कार्यकाल में वह विधायकों के कार्यों से पूरी तरह संतुष्ट है। इसलिए उन्हें ही फिर से जनता के बीच जाने का मौका दिया है।
प्रत्याशियों का प्रोफाइल
नितिन अग्रवाल (हरदोई सदर) : नितिन अग्रवाल के राजनीतिक कॅरियर की शुरुआत पिता नरेश अग्रवाल की विरासत से हुई। उन्होंने पहली बार वर्ष 2008 में पिता नरेश अग्रवाल के इस्तीफे के बाद खाली हुई सदर सीट पर उपचुनाव लड़ा। बसपा के समर्थन से इस उपचुनाव को जीतने के बाद उन्होंने 2012 के विधानसभा चुनाव में साइकिल की सवारी की। इस चुनाव में भी वह अच्छे मतों से विजयी हुए। इसके बाद वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में मोदी लहर के बाद भी उन्होंने सपा के टिकट पर जीत दर्ज की थी।
माधवेंद्र प्रताप सिंह रानू (सवायजपुर) : कभी भाजपा जिला युवा मोर्चा के उपाध्यक्ष रहे माधवेंद्र प्रताप सिंह रानू की माता गीता देवी भरखनी की ब्लॉक प्रमुख रह चुकी हैं। उनके बड़े भाई धीरेंद्र प्रताप सेनानी भी ब्लॉक प्रमुख रहे।
इनकी भाभी वर्तमान ब्लॉक प्रमुख हैं। माधवेंद्र ने 2012 में पहली बार भाजपा के टिकट पर सवायजपुर सीट से चुनाव लड़ा था लेकिन सफलता नहीं मिली। वह तीसरे स्थान पर रहे थे। इसके बाद भाजपा ने उन्हें 2017 में फिर से मौका दिया। इस बार मोदी लहर का लाभ उन्हें मिला। वह सपा समर्थित प्रत्याशी पद्मराग सिंह यादव पम्मू को हराकर विधायक बने।
रजनी तिवारी (शाहाबाद) : इनके पति उपेंद्र तिवारी 2007 में बिलग्राम सीट से बसपा के टिकट पर विधायक बने थे। बीमारी के कारण उनकी मौत हो गई थी। खाली हुुई सीट पर 2008 में हुए उपचुनाव में बसपा ने रजनी तिवारी को चेहरा बनाया। उन्होंने जीत दर्ज की। 2012 में पहली बार परिसीमन के बाद नई विधानसभा सीट बनी सवायजपुर से बसपा के टिकट पर एक बार फिर इन्होंने जीत दर्ज की। 2017 में भाजपा ने इन्हें शाहाबाद सीट से प्रत्याशी घोषित किया। इस बार भी ब्राह्मण समीकरण ने इन्हें यहां से विजयी बनाया।
अलका अर्कवंशी (संडीला) : अलका संडीला तहसील के नरायनपुर सूंडा की निवासी हैं। इनके पति अनूप सिंह दिल्ली में इनकम टैक्स कमिश्नर के पद पर हैं। अलका सिंह ने डॉक्टरी की पढ़ाई की है। इनके ससुर आरए सिंह रिटायर्ड इंजीनियर हैं जो काफी समय से राजनीति से जुड़े हैं। संडीला में महाराजा सल्लीह की मूर्ति स्थापना में इनका योगदान रहा है। अलका सीतापुर में एक स्कूल का संचालन भी करती हैं।
आशीष सिंह आशू (बिलग्राम-मल्लावां) : पिता स्व. शिवराज सिंह लोकतंत्र सेनानी होने के साथ ही गौसगंज स्थित पीबीआर इंटर कालेज में प्रधानाचार्य रहे। इसके अलावा उन्होंने आरएसएस में लंबे समय तक काम कर विभाग संघचालक के पद की जिम्मेदारी का निर्वहन किया। विधायक आशीष सिंह आशू ने लखनऊ विश्वविद्यालय से राजनीतिक पारी की शुरुआत की। विश्वविद्यालय में वह महामंत्री का चुनाव लड़े थे। इसके अलावा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से वह विश्वविद्यालय प्रमुख भी रहे हैं। वर्ष 2017 में वह बीजेपी के टिकट पर बिलग्राम-मल्लावां विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीते थे।
श्याम प्रकाश (गोपामऊ) : 1996 में पहली बार बसपा के टिकट पर इन्होंने बावन विधानसभा सीट पर जीत दर्ज कराई। इसके बाद 2004 में अहिरोरी से विधायक रहीं ऊषा वर्मा के इस्तीफे से उन्हें दूसरा मौका मिला। उपचुनाव में जीतकर वह दूसरी बार विधायक हुए। 2007 में सपा के टिकट पर अहिरोरी विधानसभा सीट पर उन्हें हार का सामना करना पड़ा। बदले परिसीमन में 2012 में उन्होंने सपा के टिकट पर गोपामऊ विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीते। इसके बाद भाजपा में शामिल होकर उन्होंने 2017 के विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज कराई।
प्रभाष कुमार (सांडी): वर्ष 2007 में अहिरोरी विधानसभा सीट से सपा के टिकट पर पहली बार चुनाव लड़े। लेकिन सफलता नहीं मिली। इसके बाद 2010 में कोथावां ब्लॉक प्रमुख हुए।
वर्ष 2014 में भाजपा से लोकसभा का टिकट मांगा लेकिन उनकी जगह अंशुल वर्मा को भाजपा ने प्रत्याशी घोषित किया। 2017 में सांडी विधानसभा सीट पर भाजपा के टिकट पर इन्होंने जीत दर्ज की।
रामपाल वर्मा (बालामऊ) : कोथावां ब्लॉक की शाहपुर ग्राम पंचायत से प्रधानी के चुनाव से राजनीतिक सफर की शुरुआत की। इसके बाद कोथावां के ब्लाक प्रमुख भी हुए। 1984 में बेनीगंज सुरक्षित सीट से निर्दलीय विधायक रहे। वर्ष 1988 व 1991 में कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़े और जीते। वर्ष 1993 के विधानसभा चुनाव में हार का सामना करने के बाद वह बसपा में शामिल हो गए। 2004 के उपचुनाव और 2007 के चुनाव में बसपा से विधायक हुए। बसपा सरकार में वह स्वतंत्र प्रभार राज्यमंत्री भी रहे।
इसके बाद बदले परिसीमन में वर्ष 2012 में बनी नई बालामऊ विधानसभा सीट से बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा लेकिन सपा के अनिल वर्मा से हार मिली। वह एक बार कांग्रेस के टिकट पर मिश्रिख और एक बार सपा के टिकट पर हरदोई लोकसभा सीट पर भी चुनाव लड़े। लेकिन सफल नहीं हुए। 2017 में भाजपा की लहर में उन्हें एक बार फिर विधायक बनने का मौका मिला।
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