रेफरल सेंटर बनकर रह गया है सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र नंदनगर
बलरामपुर।
ग्रामीण क्षेत्रों में बने अस्पताल अपना अस्तित्व खोते जा रहे हैं। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र नंदनगर खजुरिया विभागीय उदासीनता के चलते रेफरल सेंटर बनकर ही रह गया है। यहां पर सर्जन व विशेषज्ञ डाक्टरों की तैनाती न होने के कारण गंभीर व ऑपरेशन वाले मरीजों को नहीं रोका जाता है।
अस्पताल में चारों तरफ अव्यवस्था का बोलबाला है। अस्पताल का मुख्य द्वार अतिक्रमण के चलते हमेशा बंद रहता है। चारों तरफ गंदगी के चलते मरीज व तीमारदारों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
सीएचसी नंदनगर खजुरिया के मुख्य द्वार पर स्थानीय लोगों ने अतिक्रमण कर रखा है। रास्ते पर बैलगाड़ी खड़ी करने के साथ ही मुख्य द्वार के सामने बैल बांधे जाते हैं। रास्ते पर अतिक्रमण के चलते अस्पताल का मुख्य द्वार हमेशा बंद रहता है। मुख्य द्वार बंद होने के कारण मरीजों को काफी असुविधा झेलनी पड़ती है।
रास्ते से अतिक्रमण हटवाने के लिए अधीक्षक की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है जिससे अतिक्रमणकारियों का मनोबल बढ़ता जा रहा है। अस्पताल में मेडिकल कचरे के निस्तारण का कोई व्यवस्था नही है। मेडिकल कचरा अस्पताल परिसर में ही फैला रहता है जिसके चलते यहां आने वाले मरीज व तीमारदारों में संक्रामक रोग फैलने का खतरा बना रहता है।
मरीजों को बांधी जाने वाली पट्टी, रूई एवं इंजेक्शन की सिरिंज आदि को अस्पताल परिसर में ही फेंक दिया जाता है। मेडिकल कचरे को इकट्ठा कर उसे जलाया जाता है। सीएचसी में तैनात अधीक्षक जावेद अख्तर यहां कभी कभार ही आते हैं। यहां तैनात अधिकांश डाक्टर व कर्मचारी भी प्राय: गायब ही रहते हैं।
सोमवार को भी यहां तैनात अधीक्षक सहित डॉ. सुनीता, डॉ. सुमित कुमार एवं लैब टेक्नीशिएन राजेश मिश्रा मौजूद नहीं मिले। अधीक्षक के पीएचसी जोकहिया पर होने तथा दो डाक्टर व लैब टेक्नीशिएन के सीएल पर रहने की बात बताई गई। क्षेत्रवासी राम सागर, रोहित सिंह, संकेत सिंह, संतराम, राधेश्याम व पुनेश वर्मा आदि ने बताया कि यहां अधीक्षक कभी कभार ही आते हैं।
गंभीर मरीजों को रेफरल सेंटर ले जाने के लिए एंबुलेंस की आवश्यकता पड़ती है। यहां पर महीनों से खड़ी एंबुलेंस धूल फांक रही है। एंबुलेंस खराब है या सही, इसकी जानकारी देने वाला भी कोई नहीं है। क्षेत्रवासी समयदीन पासवान, बाबा दीन, आमिर चौधरी व अब्दुल समद आदि ने बताया कि एंबुलेंस होने के बावजूद मरीजों की स्थिति गंभीर होने पर परिजन प्राइवेट वाहन से मरीज ले जाने को विवश होते हैं।
