यूपी में फार्मासिस्ट के अधिकारों के लिए साल 1976 में शुरू हुआ था संघर्ष
लखनऊ । राजधानी के बलरामपुर, सिविल, लोकबंधु सहित तमाम अस्पतालों में गुरुवार को उत्तर प्रदेश डिप्लोमा फार्मासिस्ट एसोसिएशन के संस्थापक फार्मेसी रत्न स्वर्गीय राम उजागिर पाण्डेय की 20वीं पुण्यतिथि मनाई गई। इस अवसर पर फार्मासिस्टों ने स्वर्गीय राम उजागिर पाण्डेय के सिद्धांतों पर चलने का संकल्प लिया। आज ही 6 जुलाई 2003 में उत्तर प्रदेश में फार्मासिस्ट को एकत्र करने वाले कर्मचारी नेता राम उजागिर पांडे की सड़क दुर्घटना में असामयिक निधन हो गया था।
फार्मासिस्ट फेडरेशन के अध्यक्ष सुनील यादव ने बताया कि डॉक्टर के लिखे पर्चे पर मरीजों को दवा देने से लेकर उसके भंडारण तक कार्य करने वाले फार्मासिस्ट हेल्थ केयर प्रोफेशनल होते हैं। फार्मासिस्ट की भूमिका केवल मरीजों को दवा देने तक ही सीमित नहीं होती, दवा का डोज निर्धारण से लेकर क्लीनिकल और फार्मास्यूटिकल से संबंधित शोध यानी कि रिसर्च तक की जिम्मेदारी इन्हीं के कंधों पर होती है।
फार्मासिस्ट फेडरेशन के अध्यक्ष सुनील यादव ने बताया डिप्लोमा फार्मेसिस्ट एसोसिएशन उत्तर प्रदेश का गठन कुंभ मेले के अवसर पर 1976 में हुआ था। डॉ राम उजागिर पाण्डेय व 1976 बैच एवं अन्य वरिष्ठ साथियों द्वारा किया गया। जिसे 1977-78 के साथियों ने मजबूती प्रदान की। इस संगठन के गठन से पहले फार्मेसिस्ट साथियों के साथ विभाग के अधिकारियों की तरफ से सौतेला व्यवहार किया जाता रहा है। इसी को देखते हुए राम उजागिर पाण्डेय व अन्य साथियों ने अत्याचार के खिलाफ आवाज बुलंद करने के लिए संगठन बना डाला।
1976 में डिप्लोमा
फार्मेसिस्ट एसोसिएशन बनाने पर सहमति बनी और चिट्ठी पत्रों के माध्यम से अपने अस्तित्व की लड़ाई के लिए आगे आये। 1976 से शुरू हुआ संघर्ष आज भी जारी है। प्रदेश में फार्मेसी की शिक्षा शुरू होने के पश्चात फार्मेसी व्यवसाय और फार्मेसिस्टों के जीवन में आमूलचूल परिवर्तन लाने का पूरा श्रेय स्वर्गीय राम उजागिर पाण्डेय को जाता है।
फेडरेशन के संयोजक के के सचान, जिला सचिव जी सी दुबे ने कहा कि स्वर्गीय राम उजागिर पांडे ने फार्मेसी छात्रों को एकजुट करके संघर्ष की शुरुआत की थी और संघ का गठन किया था । सतत संघर्ष करते हुए फार्मासिस्ट संवर्ग में चीफ फार्मेसिस्ट से लेकर संयुक्त निदेशक तक के पद सृजित कराये।