उत्तर प्रदेश

नवयुग कन्या महाविद्यालय के हिंदी विभाग की नवज्योतिका संस्था द्वारा प्रेमचंद और गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती के अवसर पर एक विशेष राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई।

लखनऊ।
तुलसी का राम राज्य और प्रेमचंद का ग्राम स्वराज। इस अवसर पर मुख्य वक्ता प्रोफेसर रामकृष्ण जयसवाल ,नेशनल पीजी कॉलेज हिंदी विभाग ,विशिष्ट वक्ता प्रो यशवंत कुमार विरोदय ,शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय हिंदी विभाग एवं प्रोफेसर ऋषि कुमार मिश्रा क्रिश्चियन कॉलेज हिंदी विभाग महाविद्यालय की प्राचार्या प्रोफेसर मंजुला उपाध्याय एवं हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर मंजुला यादव,डा अपूर्वा अवस्थी डा अंकिता पांडे,डा मेघना यादव उपस्थित रहीं ।कार्यक्रम का प्रारंभ दीप प्रज्वलन और मां सरस्वती के चित्र तथा प्रेमचंद और तुलसीदास जी के चित्र पर माल्यार्पण से हुआ। सभी अतिथियों का स्वागत पौध,अंग वस्त्र और स्मृति चिन्ह से किया गया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए हिंदी विभाग की डॉक्टर अंकिता पांडे ने कहा कि आज दो महान विभूतियां प्रेमचंद और गोस्वामी तुलसीदास की जयंती पर इस महा कुंभ में आपका स्वागत करते हैं। विशिष्ट वक्ता प्रो. यशवंत कुमार विरोदय ने कहा कि जब हम आस्था और अकुंठित मानव चेतना की बात करते हैं तो हम देखते हैं ना तो तुलसीदास का समय अनुकूल था ना ही प्रेमचंद के समय अनुकूल परिवेश था। इसलिए ना तो तुलसीदास का रामराज्य पूरा हुआ ना ही प्रेमचंद का ग्राम स्वराज। तुलसी ने रामराज्य का जो स्वप्न देखा वह भारतीय संस्कृति और सामाजिक भूमि पर खड़े होकर देखा।
प्रेमचंद प्रारंभिक दौर में गांधीवाद और बाद में यथार्थवाद से जूझते हुए अंत में गोदान उपन्यास लिखते हैं। उसमें होरी की विवशता है। तुलसी भी अंतिम समय में कवितावली में लिखते हैं खेती ना किसान को ना …. कहां जाई का करी।। इस प्रकार दोनों साहित्य कार यथार्थ पूर्ण कटुता से साक्षात्कार करना पड़ा। उन्होंने कहा दो विश्वयुद्धों के बाद आज हम तीसरे विश्वयुद्ध के मुहाने पर खड़े है। इन युद्धों का प्रभाव हमारे साहित्य पर पड़ा।विशिष्ट वक्ता ऋषि कुमार मिश्रा ने कहा कुछ ऐसे व्यक्ति होते हैं जिनका शरीर तो मर जाता है लेकिन उनके द्वारा किए गए कार्य या रचे गए शब्द जनमानस को सुवासित करते रहते हैं। ऐसे ही महान कवि तुलसीदास और गद्य लेखक प्रेमचंद थे जिन्होंने अपनी रचनाओं द्वारा जनमानस को सुवासित किया। मेधावी रचनाकार क्रांतिदृष्टा होता है तुलसी और प्रेमचंद दोनों ने कालजयी रचनाएं रचीं जो आज भी प्रासंगिक हैं। तुलसी ने राम के द्वारा मानवीय मूल्यों की स्थापना की । प्रेमचंद तुलसीदास के आधुनिक संस्करण थे। दोनों रचनाकार अपने साहित्य में रामराज और स्वराज समाज की रचना करते हैं क्योंकि दोनों के केंद्र में मनुष्य ही है। उन्होंने प्रेमचंद की तीन कहानियां परीक्षा, अनमोल रतन,बालककी चर्चा की।
मुख्य वक्ता प्रो रामकृष्ण जयसवाल ने कहा कि प्रेमचंद का पूरा साहित्य नारियों के विभिन्न चरित्रों से ओतप्रोत है।उनकी अनेक कहानियों में नारियों के विभिन्न रूप दिखाई देते हैं। प्रेमचंद और तुलसीदास दोनों ने लोक और शास्त्र को मिलाकर अपनी रचनाएं रचीं। तुलसीदास पर विदेशी विद्वानों ने शोध किया वहीं प्रेमचंद के उपन्यास गोदान पर भी विदेशों में शोध हुए। उन्होंने कहा कि भारत भूमि की यह विशेषता है कि जब भी आवश्यक हुई यहां पर महापुरुषों के अवतार हुए और वसुधैव कुटुंब की भावना से साहित्य रचा गया। उन्होंने कुछ विशेष पुस्तकों की भी चर्चा की।
महाविद्यालय की प्राचार्या प्रो मंजुला उपाध्याय ने कहा तुलसी ने रामचरित मानस के द्वारा जीवन के सभी आदर्शों की स्थापना की। आदर्श पुत्र, आदर्श पत्नी आदर्श भाई, आदर्श पिता के रुप को रामचरितमानस में स्थान दिया। प्रेमचंद का साहित्य तत्कालीन समाज से प्रभावित रहा उन्होंने वंचितों पर , समाज की विभिन्न परिस्थितियों पर साहित्य रचा।
अंत में धन्यवाद ज्ञापन हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर मंजुला यादव द्वारा दिया गया। अतिथियों का परिचय डा मेघना यादव द्वारा दिया गया।छात्रा खुशी ने राम भजन प्रस्तुत किया।
इस अवसर पर महाविद्यालय की समस्त प्रवक्ताएं और छात्राएं उपस्थित रहीं। कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान से हुआ।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button