उत्तर प्रदेश

यूपी: पीएम के बुंदेलखंड दौरे से भाजपा मजबूत करेगी सियासी व्यूह, पथरीली जमीन पर खिले कमल को खाद-पानी देने की तैयारी

प्रधानमंत्री मोदी पिछले लगभग साढ़े चार महीने में कई बार प्रदेश के अलग-अलग स्थानों पर आ चुके हैं। पूर्वांचल में अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी फिर कुशीनगर, सिद्धार्थनगर और फिर वाराणसी, इसके बाद लखनऊ, सुल्तानपुर। अब वह बुंदेलखंड आ रहे हैं।

तीन महीने बाद प्रस्तावित प्रदेश विधानसभा चुनाव की चौसर पर भाजपा की लगातार दूसरी जीत सुनिश्चित करने के लिए विपक्ष के विरुद्ध भाजपा के तरकश में विकासवाद, आस्थावाद, सरोकारवाद और सामर्थ्यवाद जैसे अचूक शस्त्रों को सजा चुके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को बुंदेलखंड से इसमें राष्ट्रवाद का शस्त्र भी सजा देंगे। उनकी कोशिश इस दौरे से इस पथरीली जमीन पर 2014 से अब तक लहलहा रहे कमल की फसल को वर्ष 2022 के लिए पर्याप्त खाद-पानी देने की तो होगी ही। साथ ही बुंदेलों की वीरता, शौर्य और उनके राष्ट्रप्रेम में उत्सर्ग की गाथाओं, यहां के लोगों के परिश्रम, सांस्कृतिक सरोकारों के प्रति समर्पण के साथ पलायन और पानी जैसी समस्याओं के समाधान के लिए भाजपा की केंद्र व प्रदेश सरकार के कामों को बताकर विकासवाद, आस्थावाद, सरोकारवाद, सामर्थ्यवाद पर राष्ट्रवाद का रंग चढ़ाना भी होगा।

प्रधानमंत्री मोदी पिछले लगभग साढ़े चार महीने में कई बार प्रदेश के अलग-अलग स्थानों पर आ चुके हैं। पूर्वांचल में अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी फिर कुशीनगर, सिद्धार्थनगर और फिर वाराणसी, इसके बाद लखनऊ, सुल्तानपुर। अब वह बुंदेलखंड आ रहे हैं। इसके अलावा केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी लखनऊ, वाराणसी, बस्ती एवं सपा प्रमुख अखिलेश यादव के संसदीय क्षेत्र आजमगढ़ आ चुके हैं।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कैराना से गाजीपुर तक के लगातार दौरे चल रहे हैं। इन दौरों में विकासवाद, गरीबों को दी गईं सुविधाएं पर बात के साथ आस्था व सरोकारों की रणनीतिक चालों से बाजी सजा चुके प्रधानमंत्री का अब परिश्रम व पराक्रम और आत्मसम्मान व आत्मगौरव की पराकाष्ठा की तमाम गाथाओं को अपने आंचल में छिपाए बुंदेलखंड की धरती पर आना बता रहा है कि भाजपा ने वर्ष 2022 की बिसात पर मोहरे ही नहीं बिछा दिए हैं, बल्कि उन चालों को भी चलना शुरू कर दिया जिनसे भाजपा को विपक्ष को मात देने की उम्मीद नजर आ रही है।

प्रतीकों से निकल रहे दौरे के निहितार्थ
राजनीति में प्रतीकों और उनके प्रयोग के समय का बहुत महत्व होता है। सभी को पता है कि झांसी की रानी हमारे देश के स्वतंत्रता संग्राम का ऐसा नाम हैं, जिनकी बहादुरी के उल्लेख के बिना आजादी की लड़ाई का इतिहास पूरा नहीं होता। इनमें बुंदेलों और पेशवा की वीरता की गाथाएं भरी पड़ी हैं। आल्हा-ऊदल तो वीरता के प्रतीक हैं, जो सिर्फ बुंदेलखंड में नहीं, अपितु देश के तमाम हिस्सों में चर्चित हैं। इसको देखते हुए डिफेंस कॉरिडोर के झांसी नोड में मिसाइल निर्माण के लिए भारत डायनामिक्स लि. की इकाई का शिलान्यास करने के लिए आजादी के अमृत महोत्सव के तहत चल रहे ‘राष्ट्र रक्षा समर्पण पर्व’ के समापन के बहाने रानी लक्ष्मीबाई की जयंती चुनना अपने आप प्रधानमंत्री के इस दौरे के महत्व को समझा देता है कि वह क्या संदेश देने वाले हैं।

वरिष्ठ पत्रकार वीरेंद्र भट्ट कहते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी की अब तक शैली को देखते हुए यह लग रहा है कि वे बुंदेलखंड के दौरे में प्रतीकों के जरिये न सिर्फ वीरता की इस धरती के विकास की गैर भाजपा सरकारों की तरफ से की गई उपेक्षा का उल्लेख कर उन्हें घेरेंगे, बल्कि यहां की गाथाओं के सहारे राष्ट्रवाद के हथियारों से भी उन पर हमला भी करेंगे। इसका जवाब दे पाना विपक्ष के लिए काफी मुश्किल होगा। क्योंकि बुंदेलखंड के विकास की अब तक हुई अनदेखी व यूपीए सरकार के राहत पैकज में हुई लूटपाट और उस पर हुई सियासी खींचतान के आरोपों से गैर भाजपा दलों का बच पाना मुश्किल है।

यह भी है वजह
वैसे तो प्रधानमंत्री कई अन्य परियोजनाओं का भी शिलान्यास व लोकार्पण करेंगे। इनमें रक्षा-सुरक्षा से लेकर जनसुविधाएं तक शामिल हैं। पर, उनका झांसी के बाद महोबा का दौरा विकासवाद से राष्ट्रवाद के रंग को और गाढ़ा कर सकता है। बुंदेलखंड के वरिष्ठ पत्रकार देवीप्रसाद गुप्त कहते हैं कि बुंदेलखंड की धरती अकूत जल भंडार व खनिज संपदा को अपनी गोद में छिपाए है। बावजूद इसके यह धरती अब तक प्यासी और बदहाल रही है। इसकी वजह से लोग पलायन को मजबूर हुए। ऐसे में प्रधानमंत्री का बुंदेलखंड का यह आठवां और महोबा का तीसरा दौरा काफी अहम है। महोबा में वे जिस अर्जुन बांध परियोजना का लोकार्पण करने आ रहे हैं, उससे किसानों को खेती के लिए पानी मिलना सुलभ होगा और पलायन रुकेगा।

गुप्त की बातों से साफ है कि बुंदेलखंड के कुछ हिस्से की सूखी धरती को सींचने वाली इस परियोजना के सहारे प्रधानमंत्री की कोशिश ‘कमल’ के लिए पानी जुटाने की भी होगी। ध्यान दिलाना जरूरी है कि नरेंद्र मोदी ने बतौर प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में 27 अक्तूबर 2013 को झांसी में विजय शंखनाद रैली में कहा था, ‘मैं आज आपके पास रोने-धोने के लिए नहीं आया। न मैं आंसू बहाने आया हूं और न ही आंसू बहाने वालों की कथा सुनाने आया हूं। मैं आज आपके आंसू पोंछने का यकीन दिलाने आया हूं। यहां की वीरता को नमन करने आया हूं।’ साफ है कि प्रधानमंत्री शुक्रवार को बुंदेलखंड के लोगों को वादों पर खरे उतरने का भरोसा ही नहीं दिलाएंगे, बल्कि बुंदेलखंड में हिंदुत्व की आस्था से जुड़े चित्रकूट तो वीरों के इतिहास को संजोए कलिंजर से लेकर महोबा के किलों तक के विकास व सुरक्षा और उनके सरोकारों को विस्तार देकर भी भाजपा के तरकश में राष्ट्रवाद के हथियार सजाएंगे।

ब्यूरो रिपोर्ट- अरविंद मिश्रा।
ब्यूरो रिपोर्ट- अरविंद मिश्रा।

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