लखनऊ

इण्डियन इण्डस्ट्रीज एसोसिएशन (आई0आई0ए0) द्वारा आपके चुनाव घोषणा पत्र में शामिल करने हेतु उत्तर प्रदेश के एम०एस०एम०ई० सेक्टर के विकास से सम्बन्धित कुछ मुद्दों का प्रस्ताव

लखनऊ।

इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन ने उत्तर प्रदेश सरकार से एमएसएमई सेक्टर के विकास के संबंधित मुद्दों पर कुछ सहयोग की मांगे रखी जिसमें निम्न मुद्दों को रखा गया

1. उत्तर प्रदेश के सभी सरकारी विभागों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों एवं स्वायतशासी निकायों द्वारा उनकी कुल खरीद का कम से कम 30 प्रतिशत हिस्सा प्रदेश के सुक्ष्म एवं लघु उद्यमियों से खरीद किया जाये।

सरकार के विभागीय टैण्डरों में एम०एस०एम०ई० के लिये किसी भी प्रकार की तकनीकी शर्ते न एवं सारी खरीद जैम पोर्टल के माध्यम से ही की जाये।

कारण: भारत सरकार के सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम मंत्रालय द्वारा एमएसएमई एक्ट 2006 की धारा 11 एवं प्रदेश सरकार द्वारा जारी निर्देश/ नीतियों के अन्तर्गत सभी सरकारी विभाग, पब्लिक अण्डरटेकिंग एवं स्वायतशासी निकायों द्वारा उनके कुल खरीद का 25 प्रतिशत भाग सूक्ष्म एवं लघु उद्योगों से करने को अनिवार्य किया गया है। सूक्ष्म एवं लघु उद्योगों की महत्ता को देखते हुए यह कम से कम 30 प्रतिशत होना चाहिए। विगत कई वर्षों की व्यवस्था देखे तो यह खरीद 25 प्रतिशत तक भी नही पहुच पा रही है।

जैम पोर्टल खरीद के लिये काफी उपयोगी एवं पारदर्शी माध्यम है। इसके बावजूद कई सरकारी विभागों ने इस पर रजिस्ट्रेशन नहीं किया है। इसका नुकसान एम०एस०एम०ई० को उठाना पड़ रहा है एवं यह सरकार की मंशाओं पर भी सवाल खड़ा करता है।

प्रदेश सरकार के अनेक निर्देशो/ शासनादेशों में स्पष्ट रूप से अंकित है कि सरकारी टैण्डरों में किसी भी तरीके की तकनीकी शर्ते नही होगी। उदाहरणतया उत्पादन क्षमता, टर्न ओवर, पर्फामेन्स एवं अनुभव इत्यादि। इसके बावजूद भी ऐसी तकनीकी शर्ते लगाई जाती है जिससे की सूक्ष्म एवं लघु इकाईया इस प्रक्रिया में भाग नही ले पाती है।

2.प्रदेश के एम०एस०एम०ई० की लीज होल्ड भूमि को फ्री होल्ड किया जाये।

प्रदेश के औद्योगिक विकास के लिए सरकार की तरफ से अनेक योजनाओं की घोषणा की गई है परन्तु उद्यमियों को औद्योगिक भू-खण्ड आवश्यकतानुसार प्राप्त नहीं हो रहे है। वर्तमान में अनेक उद्यमियों के पास अपनी आवश्यकता से अधिक भूमि उपलब्ध है एवं वो कई वित्तीय समस्याओं से भी जूझ रहे हैं। अगर इन उद्यमियों को अपने औद्योगिक भू-खण्ड का कुछ हिस्सा भू उपयोग के परिवर्तन के बिना बेचने की अनुमति मिल जाये तो भूमि की समस्या आंशिक रूप से हल हो सकती है। इससे निम्नलिखित फायदे होगें

1. वर्तमान उद्यमियों को अपना व्यवसाय बढ़ाने के लिये अतिरिक्त पूजी प्राप्त हो जाएगी।
2. नये उद्यमियों को औद्योगिक भूखण्ड की उपलब्धता सुनिश्चित होगी।

3. प्रदेश में रोजगार के नए अवसर सृजित होगे।

4. लीज होल्ड औद्योगिक भूमि को फ्री होल्ड करने से प्रदेश सरकार को अतिरिक्त राजस्व भी प्राप्त होगा।

प्रदेश सरकार के औद्योगिक विकास विभाग अनुभाग 3 द्वारा शासनादेश संख्या 10.638/77-3-16 918 भा/ 81 दिनांक 29 अप्रैल 2016 के अनुसार औद्योगिक विकास विभाग (तत्कालीन उद्योग विभाग) द्वारा उद्योगों की स्थापना के लिए विभिन्न कंपनियों हेतु अधिग्रहित की गई भूमि को फ्री होल्ड किए जाने संबंधी नीति 2016 में प्रकाशित की गई थी जो व्यवहारिक एवं उद्योगों के हित में थी लेकिन यह नीति UPSIDA उद्योग निदेशालय एवं अन्य विकास प्राधिकरणों द्वारा संबंधित औद्योगिक आस्थानों मे उद्यमियों को दी गई औद्योगिक भूमि पर लागू नहीं की गयी है

इस संबंध में आईआईए निम्न सुझाव प्रस्तुत करता है:

1. लीज होल्ड औद्योगिक भू-खण्ड को फ्री होल्ड किया जाए

2. फ्री होल्ड की गयी भूमि का उपयोग, औद्योगिक प्रयोजन के अतिरिक्त नहीं किया जाए।

3. लीज होल्ड अधिकतम 10 प्रतिशत कन्वेंशन चार्जेस लेकर फ्री होल्ड किया जाए।

3. औद्योगिक परिसम्पत्तियों/ भवनों पर हाउस टैक्स आवासीय भवनों से कम किया जाये।

कारण: उत्तर प्रदेश नगर निगम अधिनियम 1959 की धारा 174 में सम्पत्ति कर के लिए औद्योगिक सम्पत्तियों के वार्षिक मूल्य को परिभाषित किया गया है। वर्ष 2003 में उत्तर प्रदेश नगर निगम अधिनियम की विज्ञप्ति संख्या 16 दिनांक 27/05/2003 में सम्पत्तियों के वार्षिक मूल्यांकन के संबंध में व्यवस्था दी गई है। माह मार्च 2002 से माह मार्च 2014 तक औद्योगिक एवं वाणिज्यिक सम्पत्तियों के कर नियमों में स्पष्टता न होने के कारणए अलग अलग नगर निगमों द्वारा अलग अलग कर आरोपित किए जा रहे थे। आईआईए द्वारा काफी समय से प्रयास करने पर नगर विकास विभाग, उत्तर प्रदेश द्वारा जारी विज्ञप्ति संख्या 1463 दिनांक 27/09/2013 द्वारा नगर निगम ( सम्पत्ति कर) द्वितीय संशोधन नियमावली जारी की गयी जिसके कारण शासनादेश के अन्तर्गत घोषित व्यवस्था के विपरीत स्थिति पाई गयी और औद्योगिक परि सम्पतियों पर आवासीय सम्पत्तियों के सापेक्ष लगभग 7.5 गुना संपत्ति कर लगाने के आदेश जारी हो गए। अतः आज उत्तर प्रदेश के उद्योगों ख़ास तौर पर MSME पर संपत्ति कर का बहुत अधिक बोझ पड़ रहा है।

इस सम्बन्ध में उल्लेखनीय तथ्य निम्लिखित रुप से प्रस्तुत है :
  • नगर विकास विभाग उत्तर प्रदेश द्वारा जारी विज्ञप्ति संख्या 1463 दिनांक 27/09/2013 में आवासीय सम्पत्तियों में कारपेट एरिया, कवर्ड एरिया का 80 प्रतिशत मानते हुए कर की गणना का प्राविधान है, जबकि औद्योगिक सम्पत्तियों के लिए यह व्यवस्था नहीं दी गयी है।
  • नगर विकास विभाग उत्तर प्रदेश द्वारा जारी विज्ञप्ति संख्या में आवासीय भवनों की आयु के अनुसार 40 प्रतिशत से 70 प्रतिशत के डेप्रिसिएशन का प्राविधान है। जबकि औद्योगिक सम्पत्तियों के लिए यह व्यवस्था नहीं दी गयी है।

इस कारण औद्योगिक सम्पत्तियों के कर की गणना विज्ञप्ति में वर्णित आवासिक सम्पत्तियों के 3 गुना के स्थान पर लगभग 7.5 गुना हो गया है।

इस विसंगति के सम्बन्ध में आईआईए पिछले 7 वर्ष से उत्तर प्रदेश सरकार से पत्राचार व बैठके कर रहा है लेकिन यह विसंगति अभी भी विद्यमान है। इससे MSME के ऊपर सम्पत्ति कर का वित्तीय भार पड़ रहा है। औद्योगिक सम्पत्तियों पर संपत्ति कर कम करने का औचित्य निम्न प्रकार है:

1. औद्योगिक क्षेत्र सामान्य रूप से शहर के बाहरी क्षेत्रों में स्थित होता है। संपत्ति के उपयोग के आधार पर औद्योगिक सम्पत्तियों का गुणांक 0.80 से ज्यादा नहीं होना चाहिए। औद्योगिक भवन का वह भाग जो कार्यकारी मजदूरों एवं स्टाफ के प्रयोजनार्थ होगा वह सम्पत्ति कर की गणना से मुक्त होना चाहिए।

2. औद्योगिक भवनों के मूल्यहास का कोई प्रावधान नही है जबकि औद्योगिक भवनों की निमार्ण लागत आवासीय श्रेणी के भवनो से निश्चित रूप से ज्यादा होती है। औद्योगिक भवनों का मूल्यहास तत्काल ही शुरू हो जाता है।

3. औद्योगिक सम्पत्तियों के कारपेट एरिया की कोई हद नही है। इण्डस्ट्रीज को अनेक सरकारी कंप्लायंस जैसे फैक्ट्री एक्ट, फायर सुरक्षा आदि इसके अतिरिक्ति मशीनरी व सामान्य व्यक्तियों के आवागमन, स्टाफ़ के लिए केन्टीनए शौचालय आदि मूलभूत के लिए पर्याप्त स्थान चाहिए। अतः कवर्ड एरिया की छूट दिया जाना आवश्यक है।

4. यूपीसीडा के औद्योगिक भूखण्डों की सामान्य पैमाइश 800 वर्गमीटर से 2000 वर्ग मीटर तक होती है अतः अधिक से अधिक निर्मित भवन का 10 प्रतिशत क्षेत्रफल कराधान की सीमा में लिया जाना चाहिए।

5. औद्योगिक सम्पत्तियों के वार्षिक मूल्यांकन मे सड़को की चौड़ाई को भी आधार बनाया गया है। उद्योगों के भारी वाहन के आवागमन के लिए पर्याप्त चौड़ाई की सड़क की आवश्यकता होती है। इससे उद्यमी कराधान की उच्चतम श्रेणी में आ जाता है। इस बिन्दु को सम्पत्ति कर की गणना से मुक्त रखा जाना चाहिए।

4. रूफ टाप सोलर सिस्टम को प्रोत्साहन देने एवं क्लीन एनर्जी के उपयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से एम०एस०एम०ई० की नेट मीटरिंग की सुविधा पुनः वहाल की जाए।

राज्य सरकार की सौर ऊर्जा नीति 2017 के तहत 2022 तक प्रदेश में रूफ टाप ऊर्जा परियोजनाओं से 4300 मेगावाट ऊर्जा पैदा करने का लक्ष्य है। विगत 4 वर्षों में केवल 225 मेगावाट ऊर्जा संयत्रों (लगभग 5 प्रतिशत) की ही स्थापना हो सकी है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अब केवल 1 वर्ष शेष है।

उद्योगों के लिए ग्रोस मीटरिंग व्यवस्था लागू है जिसके अन्तर्गत संयंत्र लगाना लाभदायक नहीं है। एम०एस०एम०ई० को अक्सर पूजी का आभाव रहता है इस बजह से ग्रोस मीटरिंग में लागत के अनुरूप नुकसान हो रहा है। उल्लेखनीय है कि हमारे पड़ोसी राज्य उत्तराखण्ड में औद्योगिक संस्थानों के लिए नेट मीटरिंग की व्यवस्था है।

यह भी उल्लेखनीय है कि घरेलू एवं कृषि क्षेत्र (जहां पर नेट मीटरिंग व्यवस्था लागू है) में सोलर रूफ टाप सिस्टम लगाने की क्षमता सीमित है। लघु उद्योगों के लिए सोलर रूफ टाप सिस्टम लगाने की क्षमता एक अच्छा विकल्प है परन्तु नेट मीटरिंग की सुविधा उपलब्ध न होने के कारण उद्यमी विवश है।

अतः आई०आई०ए० का प्रस्ताव है कि उद्योगों के लिए नेट मीटरिंग की सुविधा मुहैया कराई जानी चाहिए। इससे उद्योगों के संचालन में लाभ होगा तथा रुफ टॉप सोलर सिस्टम लगाने के मामले में प्रदेश के लक्ष्य को प्राप्त करने में आसानी होगी।

5.प्रदेश के त्वरित औद्योगिक विकास के लिए पूर्वांचल एवं गंगा एक्सप्रेस वे पर नए इण्डस्ट्रीयल क्षेत्र विकसति किये जायें।

कारण: प्रदेश में इण्डस्ट्रीयल भूमि की कमी है। औद्योगिक विकास को तेज करने के लिए उद्यमियों को औद्यौगिक भूमि को उपलब्ध कराये जाने की आवश्यकता है। इसके लिए प्रदेश के पूर्वाचंल एक्सप्रेस वे, गंगा एक्सप्रेस वे व अन्य एक्सप्रेस हाईवे पर 200 से 500 एकड़ ग्रामीण भूमि को बिजली और पानी की उपलब्धता सहित चिन्हित करके उपलब्ध कराने से किसानों को अपनी भूमि का उचित मूल्य मिलेगा तथा स्थानीय रोजगार में वृद्धि होगी।

6.सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम श्रेणी के उद्योगों में पर्यावरण, विदयुत और अग्नि सुरक्षा से सम्बन्धित अन्नापत्तियों के लिए थर्ड पार्टी सहायता एवं निरीक्षण की व्यवस्थ लागू हो।

सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम श्रेणी के उद्योगों में पर्यावरण, विद्युत और अग्नि सुरक्षा से सम्बन्धित अन्नापत्तियों के लिए संयत्र/ फिटिंग्स के लिए सम्बन्धित विभाग द्वारा उचित परामर्श न मिलने के कारण उद्यमियों को अनावश्यक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इस समस्याके समाधान के लिए सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम श्रेणी के उद्यमों को अन्नापत्तियों के लिए थर्ड पार्टी सहायता एवं निरीक्षण की व्यवस्था लागू हो।

7. मण्डी शुल्क को शून्य किया जाए।

मण्डी परिसर से बाहर के व्यापार पर भी 1.5 प्रतिशत की दर से मण्डी शुल्क लगाया जा रहा है। देश के कई राज्यों में यह निःशुल्क है। अतः इसे कर मुक्त किया जाना आवश्यक है।

दूसरे देशों एवं प्रदेशों से राज्य की दाल मिलों द्वारा प्रोसेसिंग के लिए आयातित दलहन, तिलहन एवं मसाले पर भी मण्डी शुल्क पुनः देय होता है। इसकी वजह से हमारे उद्योग अधिक कीमत की वजह से दूसरे प्रदेशों से प्रतिस्पर्धा नही कर पाते है। इस वजह से रोजगार को भी हानि पहुँचती है। अतः इसे भी निःशुल्क किया जाए।

8.उत्तर प्रदेश विधान परिषद में एम०एस०एम0ई0 का प्रतिनिधित्व।

उत्तर प्रदेश में लगभग 90 लाख एम०एस०एम०ई० उद्यमी कार्यरत है जिनके माध्यम से देश की लगभग आधी आबादी का भरण-पोषण हो रहा है। प्रदेश के इन उद्यमियों में काफी संख्या में महिलाए, स्टार्टअप एवं पिछडे वर्ग के उद्यमी भी शामिल है। एम०एस०एम०ई० सेक्टर प्रदेश की आर्थिक और सामाजिक प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। ऐसे में यह उचित होगा कि उत्तर प्रदेश विधान परिषद में शिक्षकों एवं स्रातको की भाति कम से कम 8 एम0एस0एम0ई० उद्यमियों का भी प्रतिनिधित्व चुनाव के आधार पर हो।

9. वायु प्रदूषण को कम करने के लिए उद्योगों मे पी०एन०जी० को ईंधन के रूप में उपयोग पर बढ़ावा देने के सम्बन्ध में।

प्रदेश के अनेक शहरों में वायु प्रदूषण की समस्या गम्भीर होती जा रही है। आज राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में में उद्योगों को अनिवार्य रूप से पी०एन०जी० का उपयोग ईंधन के रूप में करने के आदेश जारी कर दिये गये है। उद्योगों (खासतौर पर एम०एस०एम०ई०) के समक्ष समस्या यह है कि पी०एन०जी० की कीमत अन्य परम्परागत ईंधन श्रोतो के सापेक्ष बहुत अधिक है। इसका एक मुख्य कारण उत्तर प्रदेश में पी०एन०जी० पर 10 प्रतिशत वैट लागू होना है जो अन्य पड़ोसी राज्यों की तुलना में बहुत अधिक है उदाहरण के रूप में पंजाब में पी0एन0जी0 पर 3 प्रतिशत वैट लागू है।

आई०आई०ए० का प्रस्ताव है कि उद्योगों में स्वच्छ ईंधन के उपयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से प्रदेश में पी0एन0जी0 पर वैट शून्य कर दिया जाये।

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