लखनऊ

लोक विमर्श का दूसरा दिन महिलाओं के नाम

लखनऊ।

एक ओर कवयित्री सम्मेलन में एक दर्जन महिलाओं ने रचनायें पढ़ीं, वहीं बालिका शिशु के जन्म से विवाह तक की यात्रा पर सांगीतिक प्रस्तुतियां भी हुई।

लोक संस्कृति शोध संस्थान द्वारा बौद्ध संस्थान सभागार में चल रहे आयोजन में वरिष्ठ साहित्यकार पद्मश्री डा. विद्या विन्दु सिंह, कुमायूँ कोकिला विमल पन्त, इतिहासविद डा. संगीता शुक्ला, साहित्यकार डॉ. करुणा पाण्डे ने नारी से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की।

आधुनिकता और परम्परा के मध्य संतुलन बनाने की बात हुई। भारत के स्थापित मूल्यों को संरक्षण प्रदान करने के लिए मातृ शक्ति को सकारात्मक भूमिका के लिए तैयार रहने की वकालत की गई। डॉ. विद्या विन्दु सिंह ने कहा कि नारी का रुप सर्वमंगला है। साहित्य में अनेक रूपों की चर्चा हुई। वर्तमान में नारी मुखर हुई है किन्तु यह मुखरता संस्कृति के मर्यादित रूप की सीमा न लांघे तभी इसकी सार्थकता है। इस अवसर पर लोक कथा के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए छत्तीसगढ़ की डा. मृणालिका ओझा को प्रभा श्रीवास्तव लोक कथा सम्मान, लखनऊ के नागेन्द्र बहादुर सिंह चौहान को विद्या विन्दु सिंह लोक संस्कृति ध्वजवाहक सम्मान प्रदान किया गया। लवली घिल्डियाल के निर्देशन में पर्वतीय लोकनृत्य, डा. वन्दना जैसवार ने अवधी नकटा नृत्य तथा निवेदिता भट्टाचार्य के निर्देशन में संगीत भवन के पच्चीस कलाकारों ने नारी यात्रा को गीत व नृत्य से मंच पर प्रदर्शित किया। विमर्श के पूर्व हुए कवयित्री सम्मेलन में सीमा मधुरिमा ने नारी स्वाभिमान पर केन्द्रित काव्य पाठ से किया। वरिष्ठ साहित्यकार उमा त्रिगुणायत, अलका प्रमोद ने शिक्षाप्रद कविता से किशोरियों को सीख दी। ज्योति गुप्ता ने नारी शक्ति स्वरूपा है,

डॉ. सुरभि सिंह ने ऐसा प्रेम किस अर्थ लिखूं जिसमें समता की चाह नहीं सुनाया। मधु पाठक ने चल उठ अबला विलम्ब न कर, श्रुति भट्टाचार्य ने आसमान में उड़ना चाहती हूं, प्रतिमा श्रीवास्तव ने मेरे हक़ में भी दुआ यार करा दे कोई मुझको इक बार मेरे से रब मिला दे कोई सुनाकर वाहवाही बटोरी। वरिष्ठ कवयित्री राधा बिष्ट ने माता सदा लुटाती ममता बच्चों के लिए सुनाया।

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