उत्तर प्रदेश

मेरा जीवन ही मेरा संदेश है–महात्मा गाँधी

2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर, गुजरात राज्य में जन्म हुआ..बाल्यकाल से ही गाँधी अपनी माता पुतलीबाई की परवरिश के साये में सनातन धर्म के सच्चे उपासक बने और “राम” नाम ही उनके दिव्य जीवन का आधार बना।

पत्नी के रूप में कस्तूरबा का सान्निध्य मानों स्वयं ईश्वरीय वरदान था गाँधी के लिये,जो उनसे कुछ माह बड़ी थीं..गाँधी जी ने स्वयं माना कि “अहिंसा का पाठ” मैंने ‘बा’ से सिखा है..”मुझे अहिंसा का शिक्षण अपनी पत्नी से मिला..मैं हमेशा उसे अपने सामने झुकाना चाहता था,एक ओर वह मेरी इचछा का दृढ़तापूर्वक विरोध करती और दूसरी ओर मैं जडता से प्रेरित होकर उस पर जो जुल्म जताऊं,उसे शान्ति से सहन करती। उसके इस शान्तिमय विरोध से मेरी आँखें खुल गयीं,शर्म से मेरा सिर झुक गया और मैं उसका मालिक बनने के लिये ही पैदा
हूं ऐसे मूर्खतापूर्ण धारणा से बच गया।”

बैरिस्टर की पढ़ाई करने लन्दन गये और वकालत को अपने जीवन-यापन का निमित्त बनाया..दक्षिण अफ्रीका उनके कार्य-क्षेत्र का केंद्र बना। जिसने विश्व को गाँधी दिया..क्यूंकि ट्रेन से अगर गाँधी को धक्के मार कर,आधी रात को अपमानित ना किया जाता तो शायद न्याय और समानता के अधिकार की लड़ाई का पौधा उनके मन-मस्तिष्क में ना पनपता..जो कालांतर में वट वृक्ष बना। रंग-भेद और भारतीय को वोट के अधिकार से वंचित रखने एवं सरकार द्वारा दिये गये पहचान पत्र को लेकर चिंतित समाज का नेतृत्व ही गाँधी की सकशियत की वो चिंगारी बना जिसने सम्पूर्ण दक्षिण अफ्रीका की सरकार के गैर वाजिब-अमानवीय विचार को जला कर राख किया तथा देश-दुनिया को मोहनदास करमचंद गाँधी के नाम से परिचय कराया,जो एक विचार बना।

टॉलस्टॉय आश्रम की स्थापना दक्षिण अफ्रीका में करी,जो गाँधी विचार का केन्द्र बना..क्योंकि सर्वविदित है कि “आश्रमीय व्यवस्था” ही उनके जीवन और विचार का मेरुदंड था। साबरमती का आश्रम गाँधी विचार एवं स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन की पहचान बना।

22 वर्ष दक्षिण अफ्रीका में रहने के बाद 9 जनवरी 1915 को भारत आगमन हुआ और फिर गाँधी के जीवन के एक नये अध्याय का आरम्भ हुआ। अपने राजनैतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले के निर्देशों के अनुपालन में एक वर्ष का समय “भारत भ्रमण” में लगा,जिसने गाँधी को देश की आत्मा के दर्शन कराये..गाँव और गरीब का दर्शन..ऊंच और नीच का भेद या फिर छुआछूत का भाव..क्योंकि उस काल का भारतीय समाज यही था।

4 फरवरी 1916 को गाँधी,पंडित मदन मोहन मालवीय जी के निमंत्रण पर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के शिलान्यास के समारोह में गये और वहाँ उपस्थित राजा-महाराजाओं को भरी सभा में फटकार लगाई..कहा कि जिस देश में आम जीवन गरीब हो,उसमें आपकी यह पोशाक एवं विलासितापूर्ण जीवन शोभा नहीं देता..यह सुनकर सभा में खलबली हुई और एनी बेसेंट सहित तमाम लोगों ने विरोध स्वरूप कार्यक्रम का बहिष्कार किया किन्तु गाँधी विचलित न हुए।

“1916 लखनऊ कांग्रेस अधिवेशन”..दिसम्बर माह में आयोजित इस सम्मेलन की अध्यक्षता लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने की थी,यहीं हुआ था गाँधी का प्रथम राजनैतिक मिलन कांग्रेस के स्थापित नेताओं और आम जनमानस से। प्रथम सम्बोधन ने ही स्वतंत्रता आंदोलन की दिशा को नया रुख दिया..क्योंकि स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन का शेष कालखंड ही भारतवर्ष में “गाँधी गौरव युग”बना।

“चम्पारण सत्याग्रह”..बिहार प्रान्त का एक जिला जो “नील की खेती” का केन्द्र था,जहाँ से कच्चा माल इंग्लैंड भेजा जाता था। किसान,गोरे अंग्रेजों के जुल्म और अत्याचार व विभिन्न प्रकार के टैक्सों एवं दमनकारी नीतियों में पीस रहा था। चम्पारण के किसानों का एक दल पं.राजकुमार शुक्ल जी के नेतृत्व में गाँधी जी से मिला और मदद की आस के साथ चम्पारण आने का निवेदन किया।
15 अप्रैल 1917 को गाँधी के साथ आचार्य कृपलानी,श्री रामनवमी प्रसाद और बाबू धरनीधर वकील चम्पारण पहुंचे..जिला मजिस्ट्रेट के आदेश पर कानूनी कार्रवाई के बाद जेल जाने और आन्दोलन को जारी रखने की 4 दिवसीय चर्चा एवं सहयोगियों के रूप में डा.राजेंद्र प्रसाद,बाबू ब्रज किशोर,अनुग्रह नारायण तथा शम्भू शरण के साथ ने चम्पारण सत्याग्रह को सफल किया। शासन और सरकार को गाँधी जी की बात माननी पड़ी,मुकदमा भी वापस लिया..यहीं से उन्के व्यक्तित्व को आधारशिला मिली।

1920..कांग्रेस के संविधान में संशोधन कर सविनय अवज्ञा, असहयोग आन्दोलन और सत्याग्रह जैसे अहिंसक अस्त्र लेकर गाँधी जी स्वतन्त्रता आन्दोलन का नेतृत्व कर रहे थे।
5 फरवरी 1922 को चौरी-चौरा काण्ड ने सम्पूर्ण राष्ट्र को हिला दिया..21 सिपाहियों को भीड़ ने थाने में बन्द कर जिन्दा जला दिया..गाँधी जी ने आन्दोलन को स्थगित कर दिया। सरकार ने 13 मार्च 1922 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया और 6 वर्ष के कारावास की सजा हुई।

गाँधी अपनी राजनैतिक गतिविधियों के साथ ही अपने सामाजिक आंदोलन के ऊपर भी समान रूप से कार्य कर रहे थे..छुआछूत निवारण, शराब-बन्दी,चरखा-स्वावलंबन, शिक्षा,स्वदेशी,ग्रामीण भारत में आर्थिक संरचनात्मक सुधार आदि आदि..!
नमक सत्याग्रह-दाण्डि मार्च,गोल मेज कान्फ्रेंस 1931-32,गाँधी-अम्बेडकर पूना पैक्ट। 1936-37 देश में विभिन्न प्रान्तीय सरकारों का गठन आदि अनेक घटनाक्रम होते रहे,मानो किसी बड़े आन्दोलन की रूपरेखा समय गढ़कर भविष्य के गाँधी को तैयार कर रहा हो।

मार्च 1942 “क्रिस्प मिशन” का गठन और गाँधी जी का विरोध..8 अगस्त 1942 का “भारत छोड़ो आन्दोलन” जिसमें गाँधी ने करो या मरो का आवाह्न किया..गाँधी की आलोचना असहयोग आन्दोलन को वापस लेने के लिए होती किन्तु गाँधी के व्यक्तित्व का जो स्वरूप 1942 के दौर में प्रकट हुआ उसने देशकाल का चिन्तन और स्वतन्त्रता आन्दोलन को निर्णायक मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया। तत्कालीन कांग्रेस नेतृत्व उस समय किसी बड़े आन्दोलन के लिए तैयार नहीं थी(नेहरु जी व अन्य नेतागण) किन्तु गाँधी व्यग्र और उत्साहित थे। लुईस फिशर प्रख्यात पत्रकार को गाँधी ने साक्षात्कार देते हुए कहा “मैं आन्दोलन करने के लिये अधीर हो रहा हूँ,मैं कांग्रेस को(समय की उपयुक्तता) समझाने में शायद असफल हो सकता हूँ,फिर भी अकेले मैं जनता से सीधे संवाद करुंगा। यदि कांग्रेस मेरा प्रस्ताव अस्वीकार कर देती है तो मैं देश की बालू(मिट्टी) से ही कांग्रेस से भी बड़ा आन्दोलन खड़ा कर दूंगा।” परिणामस्वरूप कांग्रेस कार्यसमिति ने चर्चा के उपरान्त 14 जुलाई 1942 को गाँधी के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। यह आन्दोलन गाँधी के नेतृत्व का चरमोत्कर्ष था।

15 मार्च 1946 को ब्रिटिश प्रधानमन्त्री एटली ने एक “मन्त्री मिशन” का गठन भारत की आज़ादी के लिए किया,पाकिस्तान का निर्माण एक और राष्ट्र के रूप में हो इसकी मांग मुस्लिम नेता जिन्ना के नेतृत्व में 1940 में ही कर चुके थे।

1946-47 जब देश अपनी आजादी की रूप-रेखा बना रहा था,उसी वक्त बंगाल समेत कई हिस्सों में दंगा भड़क गया था..हिंसा और अराजकता का नंगा नाच चल रहा था..गाँधी की हिन्दू-मुस्लिम एकता का ताना-बाना बिखर गया..असहाय गाँधी ‘शान्ति की अपील’ कर रहे थे नोआखाली में बैठकर..दिल्ली में आज़ादी के जश्न से दूर..😞

30 जनवरी 1948 का दिन जब सत्य और अहिंसा के पुजारी की तीन गोली मार कर हत्या कर दी गयी..हे राम..!

“गाँधी गौरव युग”..1916 लखनऊ कांग्रेस अधिवेशन से विधिवत आरंभ हुआ उनका योगदान,1948 जनवरी 30 शहीद होने तक भारत राष्ट्र को सेवा,मार्गदर्शन और विचार चिन्तन के रूप में प्राप्त हुआ..💐

“दे दी हमें आजादी बिना खड़ग बिना ढाल,साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल..।”..गाँधी व्यक्ति नहीं विचार है।

भारत राष्ट्र की आज़ादी के लिये नौजवानों की भावना और प्रेम के प्रतीक स्तम्भ,सत्य और अहिंसा के पुजारी,स्वतन्त्रता आन्दोलन के महानायक का जीवन युगों युगों तक मातृ भूमि की सेवा करने की प्रेरणा का संचार भावी पीड़ी को देता रहेगा..! मोहनदास करमचंद गांधी का सम्पूर्ण जीवन हर हिन्दुस्तानी के रक्त में देश प्रेम की उर्जा को भर देता है..🙏

“आने वाली पीढ़ियों को शायद ही यकीं होगा कि हाड़मांस का कोई पुतला कभी इस धरती पर चला था..!”–आइंस्टाइन
महात्मा गाँधी अमर रहें!..🙏

लेखक–ज्ञानी त्रिवेदी
गाँधीवादी चिन्तक और विचारक

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