पुलिस

पुलिस के प्रति बदलिए अपनी सोच

पुलिस को बहुत लोग नकारते है । पुलिस को गालियां भी देते हैं लेकिन शायद वो ये नहीं जानते कि पुलिस के बिना हमारा गुजारा भी नही है । मैं मानती हूं कि कुछ लोग गलत हर विभाग में होते हैं । क्या शिक्षा विभाग में सब सही होते हैं ? क्या चिकित्सा विभाग में सब सही होते हैं ? कौन सा विभाग ऐसा है जहां कुछ लोग गलत नही होते । जब एक शिक्षक अपनी ही विधार्थी के साथ कुछ गलत करता है तब सिर्फ वो एक शिक्षक ही गलत होता है । हम सभी शिक्षकों को गलत नही कह सकते । जब एक डॉक्टर अपने मरीज के साथ कुछ गलत करता है तब एक डॉक्टर ही गलत होता है । हम सारे डॉक्टर्स को गलत नही कह सकते । अच्छे बुरे इंसान हर जगह मिलते हैं । एक परिवार में भी कई बार सब लोग सभ्य होते हैं लेकिन कोई एक बेटा गलत संगत में पड़ कर गुंडा बदमाश बन जाता है । इसका ये मतलब नहीं होता कि वो पूरा परिवार ही गलत है । फिर हम क्यों पुलिस को ही गलत कहते हैं ? क्या हम नही जानते कि अगर सारी पुलिस गलत होती तो ये देश सुरक्षित नहीं रह पाता । हम सब अपने घरों में चैन से नहीं बैठे होते । सोच के देखिए जिस दिन पूरा पुलिस विभाग गलत होगा उस दिन हम लोग शायद जिंदा भी नही रह पायेंगे । फिर क्यों हम पुलिस के प्रति अपना नकारात्मक रवैया नहीं बदलते । हमारा ये नकरात्मक रवैया पुलिस का मनोबल तोड़ देता है ।
मैं कितने ही पुलिस के जवानों को जानती हूं जो अपने घरों से दूर रह के खुद अकेलेपन का शिकार होते हैं । लेकिन फिर भी समाज सेवा भी करते हैं । पुलिस के जवानों ने ब्लड डोनेट करने के लिए पुलिस के जवानों का ही एक दल बना रखा है जो जरूरत पड़ने पर अपना ब्लड डोनेट करते हैं । और ऐसी संस्थाएं लगभग हर शहर में बनी हैं । पुलिस मित्र , टीम जीवन दाता ऐसी और भी ना जाने कितनी सस्थायें हैं जो ब्लड डोनेट करते हैं । इसके अलावा भी और भी क्षेत्रों में पुलिस के जवान हमेशा समाज सेवा करते रहते हैं । अपनी जोखिम भरी ड्यूटी करने के बाद जब वो अपने प्रति लोगों का नकारात्मक रवैया देखते हैं तो उनकी हिम्मत टूट जाती है । दिन भर अपराधियों की धर पकड़ और दुर्घटनाएं देखते रहने के बाद लावारिस शवों का अंतिम संस्कार भी ये पुलिस के जवान करते हैं । उसके बाद भी ये अपनी तकलीफ अपने परिवार के सदस्यों को नही बताते कि वो लोग परेशान न हों । और अकेले ही सब कुछ बर्दाश्त करते करते कई बार कुछ पुलिस के जवान डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं । कई बार ये लोग इतना हताश हो जाते हैं कि आत्महत्या तक कर लेते हैं ।
 दिन भर अपराधियों की धर पकड़ , दुर्घटनाएं देखना , क्षत विक्षत हालत में शव देखना , फिर उनको पोस्टमार्टम के लिए लेकर जाना ,और फिर लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार करना ,ये सब देख कर कोई भी इंसान विचलित हो सकता है । लेकिन इन पुलिस के जवानों का रोज का यही काम है । इतना सब करने के बाद ये लोग अपने परिवार से दूर होने के कारण अकेलापन महसूस करते हैं । उस पर आम लोगों का उनके प्रति नकारात्मक रवैया उनको तोड़ देता है । पर ये लोग फिर भी अपनी ड्यूटी करते हैं । आपको नही मालूम कि पुलिस के अधिकांश जवान हाई बीपी के शिकार हो जाते हैं । दिन भर धूप में खड़े रहने के कारण इनकी आंखों पर भी असर पड़ता है । उसके बाद उनके अपने घरों के जरुरी काम में भी कई बार ये लोग जा पाते । तब इनके ऊपर जो बीतती है वो केवल वही समझ सकते हैं ।
हम पुलिस के लिए ज्यादा नही तो थोड़ा तो कर ही सकते हैं। सबसे पहले हमें अपने दिमाग से एक बात निकाल देनी चाहिए कि पुलिस खराब होती है । मेरी एक बार दिल्ली मेट्रो के डिप्टी कमिश्नर से इस बारे में बात हुई तो उन्होंने यही कहा कि “गलती एक व्यक्ति विशेष करता है इसके लिए पूरे विभाग को गलत ठहराना उचित नही है ।” अगर कोई एक विभाग पूरा ही गलत होगा तो कोई भी देश सुरक्षित नही रह सकता । किसी एक व्यक्ति विशेष की गलती पर पूरे विभाग को गलत कह कर हम अपनी गिरी हुई मानसिकता का परिचय देते हैं । इसका परिणाम ये होता है कि जो लोग ईमानदारी से अपना काम करते हैं उनका मनोबल टूट जाता है । उनके दिमाग में भी ये विचार आ सकता है कि जब ईमानदारी से ड्यूटी करने के बाद भी गलत होने का आरोप लग रहा है तो क्यों ईमानदारी से रहना । मैं ये नही कह रही कि ऐसा होगा ही । मेरे कहने का तात्पर्य है कि ऐसा हो सकता है ।
हमें अपनी सोच बदलने की बहुत सख्त जरुरत है |
कोरोना के समय जब पुलिस पर फूल बरसाए जा रहे थे तब पुलिस का मनोबल बहुत बढ़ा था | वो हर जगह लोगों की जान बचाने में लगे थे | पुलिस के जवान हम में से ही किसी परिवार से होते हैं | उनके साथ हमें उनके परिवार का भी सम्मान करना चाहिए | अब वक्त आ गया है कि हम सभी को अपनी पुरानी सोच को छोड़ नई सोच को अपनाना होगा | इसी में हमारा और हमारे देश का हित छुपा है |
रीता सिंह

बेंगलुरु
कर्नाटका

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