उत्तर प्रदेश

हेडिंग: “स्कूलों का मर्जर: बेटियों की शिक्षा पर ताला या भविष्य की कुंजी?”

“बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” – यह नारा केवल दीवारों तक सीमित न रह जाए, इसके लिए ज़रूरी है कि बेटियों को पढ़ने के लिए एक सहज, सुरक्षित और सुलभ माहौल मिले। मगर हाल के दिनों में जिस प्रकार से प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों को मर्ज (विलय) करने की प्रक्रिया तेज़ी से हो रही है, उसने ग्रामीण इलाकों, विशेषकर गरीब और पिछड़े तबकों की बेटियों के भविष्य पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
🛑 जब स्कूल बंद होंगे, तो लड़कियां कहां जाएंगी?
मर्जर की प्रक्रिया में स्थानीय, नज़दीकी स्कूलों को बंद कर दिया जा रहा है और बच्चों को दूर के विद्यालयों में शिफ्ट किया जा रहा है। इसका सबसे पहला और सीधा असर लड़कियों पर पड़ रहा है।
गांव की लड़कियां जो मुश्किल से 1-2 किलोमीटर चलकर स्कूल जा पाती थीं, अब 4-5 किलोमीटर दूर के स्कूलों तक कैसे पहुंचेंगी?
रोज़मर्रा की छेड़खानी, सुरक्षा का डर, परिवहन की कमी, समाज का संकुचित नजरिया – ये सब उनके कदमों को रोकने लगते हैं।
👧 फिर लड़कियां घरों में बैठ जाएंगी।
ऐसा नहीं कि ये पहली बार हो रहा है। इतिहास गवाह है कि जैसे ही लड़कियों की शिक्षा में रुकावट आई है, बाल विवाह, घरेलू शोषण, मजदूरी और ताना-बाना फिर से गहराने लगता है।
क्या हम सच में उसी पुराने युग की तरफ लौट रहे हैं जहां औरतों को सिर्फ चूल्हा-चौका और बच्चे संभालने तक ही सीमित कर दिया जाता था?
🔍 मर्जर का उद्देश्य और हकीकत:
सरकारी तर्क यह है कि स्कूलों के मर्जर से संसाधनों का समुचित उपयोग होगा, शिक्षकों की उपलब्धता बढ़ेगी और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार आएगा।
लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि –
सुदूर गांवों में बच्चों को स्कूल तक पहुंचाना ही एक चुनौती है। हर गांव में ट्रांसपोर्ट उपलब्ध नहीं है।
माता-पिता बेटियों को दूर नहीं भेजना चाहते – ना समाज की वजह से, ना सुरक्षा की। परिणामस्वरूप, स्कूल छोड़ने वाली लड़कियों की संख्या लगातार बढ़ेगी।
मर्जर की नीतियां अगर बिना सामाजिक और व्यावहारिक दृष्टिकोण के बनाई जाएंगी, तो यह “शिक्षा सुधार” नहीं, बल्कि “शिक्षा संहार” बन जाएगा – खासकर लड़कियों के लिए। जब स्कूल बंद होंगे – तो बेटियां घरों में सिमट जाएंगी, किताबें अलमारियों में बंद हो जाएंगी,
सपने आंखों में रह जाएंगे, और समाज फिर से वहीं पहुंच जाएगा – जहां नारी को पढ़ने का हक नहीं था।
❓ सवाल वही है – क्या हम फिर से उस कलयुग की ओर बढ़ रहे हैं जहां नारी केवल चुप्पी और सहनशीलता का प्रतीक थी? क्या बेटियों को शिक्षा से दूर करके हम उन्हें फिर से कमजोर बना रहे हैं? जब शिक्षा ही नहीं होगी, तो वे न्याय, बराबरी और अधिकार की लड़ाई कैसे लड़ेंगी? यदि सरकार को वास्तव में शिक्षा की गुणवत्ता सुधारनी है, तो मर्जर से पहले ज़मीनी वास्तविकताओं का गहन अध्ययन आवश्यक है। बेटियों को स्कूलों से दूर करने वाला कोई भी निर्णय समाज को पीछे धकेल देगा।
🧕 लड़कियों के लिए स्कूल तक पहुंच सबसे पहली सीढ़ी है – अगर वो सीढ़ी ही हटा दी गई, तो वो कैसे चढ़ेंगी अपने सपनों तक? 👉 इसलिए जरूरी है कि शिक्षा व्यवस्था को मज़बूत किया जाए, ना कि उसे सुलझाने के नाम पर कमजोर।
यह सिर्फ शिक्षा का सवाल नहीं, यह आने वाली पीढ़ी की बुनियाद का सवाल है।

ब्यूरो रिपोर्ट- ज्ञानचंद।
ब्यूरो रिपोर्ट- ज्ञान सिंह।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button